July 2018 Vol. III No. VII
Not your ordinary poetry magazine!
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Our next issue will be September 2018!
International Poetry الشعر শ্লোক ကဗျာ ליבע ਪਿਆਰ өлүм
guest editor Michael R. Burch
The poems that follow are the self-translated Hindi poems of S. Sushant ...
Childhood
- S.Sushant
There was a childhood decades ago.
A childhood full of mirth and laughter.
An innocent presence
beneath the sun, moon and stars.
Childhood was the feather of a bird.
Childhood was the colourful kite
soaring majestically in the sky.
Childhood was the soothing love of mother.
Childhood was the affectionate lap of father.
As time passed,
the feathers of birds got lost.
All the kites got torn.
Mother went and hid in the stars.
Father became a part of the sun.
Childhood now is an extinct creature,
found only in the museum of memories.
It is a lost age
when the horizon was
full of possibilities-'n-promises.
बचपन
- सुशांत सुप्रिय
दशकों पहले एक बचपन था
बचपन उल्लसित, किलकता हुआ
सूरज, चाँद और सितारों के नीचे
एक मासूम उपस्थिति
बचपन चिड़िया का पंख था
बचपन आकाश में शान से उड़ती
रंगीन पतंगें थीं
बचपन माँ का दुलार था
बचपन पिता की गोद का प्यार था
समय के साथ
चिड़ियों के पंख कहीं खो गए
सभी पतंगें कट-फट गईं
माँ सितारों में जा छिपी
पिता सूर्य में समा गए
बचपन अब एक लुप्तप्राय जीव है
जो केवल स्मृति के अजायबघर में
पाया जाता है
वह एक खो गई उम्र है
जब क्षितिज संभावनाओं
से भरा था
One day
- S.Sushant
One day
I said to the calendar —
I am not available today,
and did what I wanted to do.
One day
I said to the wrist-watch —
I am not available today,
and was lost in myself.
One day
I said to the purse —
I am not available today,
and exiled the market from my dreams.
One day
I said to the mirror —
I am not available today,
and did not see its face the whole day.
One day
I broke all the hand-cuffs
I had created.
I freed myself from
all shackles
one day.
एक दिन
- सुशांत सुप्रिय
एक दिन
मैंने कैलेंडर से कहा —
आज मैं मौजूद नहीं हूँ
और अपने मन की करने लगा
एक दिन मैंने
कलाई-घड़ी से कहा —
आज मैं मौजूद नहीं हूँ
और खुद में खो गया
एक दिन मैंने
बटुए से कहा —
आज मैं मौजूद नहीं हूँ
और बाज़ार को अपने सपनों से
निष्कासित कर दिया
एक दिन मैंने
आईने से कहा —
आज मैं मौजूद नहीं हूँ
और पूरे दिन उसकी शक्ल नहीं देखी
एक दिन
मैंने अपनी बनाईं
सारी हथकड़ियाँ तोड़ डालीं
अपनी बनाई सभी बेड़ियों से
आज़ाद हो कर जिया मैं
एक दिन
The touch
- S.Sushant
The hero sleeping soundly for years
in the page of the dusty book
wakes up when the innocent fingers
of a child open that page in the library
where a musty book-mark is lying.
In the dim light of that soft touch,
an incomplete story
that had come to a halt years ago,
starts again towards completion.
All characters of the world of pages
acquire life again,
dust off their bodies
and remove the weeds
that have grown around them.
Just as all petrified angels
shake off their curse
and wake up to fly again
at the mere touch of innocence,
just as Ahilya* of every story
is freed from her curse
and wakes up again
at the mere touch of her Rama*.
*Characters in Hindu mythology
स्पर्श
- सुशांत सुप्रिय
धूल भरी पुरानी किताब के
उस पन्ने में
बरसों की गहरी नींद सोया
एक नायक जाग जाता है
जब एक बच्चे की मासूम उँगलियाँ
लाइब्रेरी में खोलती हैं वह पन्ना
जहाँ एक पीला पड़ चुका
बुक-मार्क पड़ा था
उस नाज़ुक स्पर्श के मद्धिम उजाले में
बरसों से रुकी हुई एक अधूरी कहानी
फिर चल निकलती है
पूरी होने के लिए
पृष्ठों की दुनिया के सभी पात्र
फिर से जीवंत हो जाते हैं
अपनी देह पर उग आए
खर-पतवार हटा कर
जैसे किसी भोले-भाले स्पर्श से
मुक्त हो कर उड़ने के लिए
फिर से जाग जाते हैं
पत्थर बन गए सभी शापित देव-दूत
जैसे जाग जाती है
हर कथा की अहिल्या
अपने राम का स्पर्श पा कर
Do you know, love
- S.Sushant
O dear,
I love the far-away,
lost expression
in your eyes.
I love
the corners of
your sad smile
which seem
like a scab covering a wound.
I love
the unwrinkled silence
that lies between us
while we are alone together
viewing the patch of our turquoise sky
through my open window.
I love
the stab of identity
you give me
when you destroy me
in the syrupy nights.
Yes dear,
I love
those moments too
when I, invaded by emptiness,
hide my face
in your pillowy breasts
and feel as if
I am a broken alphabet
of some long-lost script,
while you linger over
the butt-ends of nothingness,
seeming to belong to here
as well as nowhere.
क्या तुम जानती हो , प्रिये
- सुशांत सुप्रिय
सुप्रिय
ओ प्रिये
मैं तुम्हारी आँखों में बसे
दूर कहीं के गुमसुम-खोएपन से
प्यार करता हूँ
मैं घाव पर पड़ी पपड़ी जैसी
तुम्हारी उदास मुस्कान से
प्यार करता हूँ
मैं उन अनसिलवटी पलों
से भी प्यार करता हूँ
जब हम दोनों इकट्ठे-अकेले
मेरे कमरे की खुली खिड़की से
अपने हिस्से का आकाश
नापते रहते हैं
मैं परिचय के उस वार
से भी प्यार करता हूँ
जो तुम मुझे देती हो
जब चाशनी-सी रातों में
तुम मुझे तबाह कर रही होती हो
हाँ, प्रिये
मैं उन पलों से भी
प्यार करता हूँ
जब ख़ालीपन से त्रस्त मैं
अपना चेहरा तुम्हारे
उरोजों में छिपा लेता हूँ
और खुद को
किसी खो गई प्राचीन लिपि
के टूटते अक्षर-सा चिटकता
महसूस करता हूँ
जबकि तुम
नहींपन के किनारों में उलझी हुई
यहीं कहीं की होते हुए भी
कहीं नहीं की लगती हो
The Return
- S.Sushant
Years later,
I have returned to my
childhood school.
A child's familiar face is
peeping out of
an old classroom.
The hazy letters written on the blackboard
are becoming clear slowly.
The frozen faces of children
playing cricket on the grounds
are becoming lively again.
A piece of chalk positioned,
two experienced eyes
gaze over gold-rimmed spectacles.
I dust the cob-webs of my mind
and get up.
The shy tree
still stands in the lawn;
on its bark
two innocent souls had
etched their curious names
around the symbol of a heart
one spring day.
The wrenched fists of time
are slowly opening up.
A child is preparing himself for the future
in the mirror of memories.
Often,
this is how we return
to obscure places
before that final Return.
लौटना
- सुशांत सुप्रिय
बरसों बाद लौटा हूँ
अपने बचपन के स्कूल में
जहाँ बरसों पुराने किसी क्लास-रूम में से
झाँक रहा है
स्कूल-बैग उठाए
एक जाना-पहचाना बच्चा
ब्लैक-बोर्ड पर लिखे धुँधले अक्षर
धीरे-धीरे स्पष्ट हो रहे हैं
मैदान में क्रिकेट खेलते
बच्चों के फ़्रीज़ हो चुके चेहरे
फिर से जीवंत होने लगे हैं
सुनहरे फ़्रेम वाले चश्मे के पीछे से
ताक रही हैं दो अनुभवी आँखें
हाथों में चॉक पकड़े
अपने ज़हन के जाले झाड़ कर
मैं उठ खड़ा होता हूँ
लॉन में वह शर्मीला पेड़
अब भी वहीं है
जिस की छाल पर
एक वासंती दिन
दो मासूमों ने कुरेद दिए थे
दिल की तस्वीर के इर्द-गिर्द
अपने-अपने उत्सुक नाम
समय की भिंची मुट्ठियाँ
धीरे-धीरे खुल रही हैं
स्मृतियों के आईने में एक बच्चा
अपना जीवन सँवार रहा है ...
इसी तरह कई जगहों पर
कई बार लौटते हैं हम
उस अंतिम लौटने से पहले
S. Sushant graduated from D.A.V. College, Amritsar, with honours and a M.A. in English. English translations of his poems and short stories have been published in several literary magazines and newspapers. He is also the author of the English poetry collection In Gandhi's Country.